विश्वविद्यालय को धार्मिक अखाड़ा बनाते कुलपति गिरीश्वर मिश्र

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के सुखदेव हॉस्टल में छात्रों द्वारा 13 सितम्बर को गणेश चतुर्थी के अवसर पर गणेश मूर्ति स्थापित की गई। इसकी सूचना बाकायदा विश्वविद्यालय परिसर में चिपकाया गया। सुखदेव छात्रावास के भीतर पिछले चार दिन से लगातार कार्यक्रम चल रहा है।

अब विश्वविद्यालय प्रशासन जवाब दे कि कार्यक्रम संचालन कर रहे छात्रों को छात्रावास में गणेश मूर्ति स्थापित करने और पांच दिन के कार्यक्रम की अनुमति किसने और किस आधार पर दिया?

क्या किसी तरह के धार्मिक कार्यक्रम विश्वविद्यालय परिसर में करने की अनुमति UGC से लेकर MHRD तक कोई देता है?

यदि विवि प्रशासन की ओर से कोई अनुमति नहीं दी गई और छात्र कार्यक्रम कर रहे हैं तो संचालन कर रहे छात्रों पर कोई कार्यवाई क्यों नहीं हुई?

किन्तु ये सब तब होगा जब विश्वविद्यालय प्रशासन का इसमें कोई योगदान नहीं होगा। विश्वविद्यालय प्रशासन शामिल नहीं होगा। लेकिन गणेश मूर्ति स्थापना में 13 सितम्बर 12:30 बजे दिन में स्वयं कुलपति गिरीश्वर मिश्र संग विश्वविद्यालय के तमाम प्रोफेसर मौजूद होते हैं और विश्वविद्यालय में एक धार्मिक कार्यक्रम को हरी झंडी देते हैं।

कुलपति महोदय जरा समझाएं कि कुलपति रहते हुए विश्वविद्यालय में इस तरह के धार्मिक कार्यक्रम में शरीक होने की अनुमति किसने दी उन्हें? 

क्या विवि संविधान इस तरह के कार्यक्रम करने और कुलपति रहते हुए उसमें शामिल होने की अनुमति देता है?

क्या भारतीय संविधान सरकारी संस्थाओं में इस तरह के कार्यक्रम करवाने और मुख्य पद पर रहते हुए धार्मिक कार्यक्रम में शरीक होने की अनुमति देता है?
यदि नहीं तो कुलपति रहते हुए किस आधार पर गिरीश्वर मिश्र इस तरह के एक धार्मिक कार्यक्रम में शामिल हुए?


कोई भी सरकारी संस्था होती है वह संविधान में निहित तमाम कानूनों का पालन करती है। उसी कड़ी में विश्वविद्यालय भी एक सरकारी संस्था है। जो एक धर्मनिरपेक्ष संस्था होती है। जहां विभिन्न देश, धर्म, समुदाय, जाति, भाषा और रंग-रूप के लोग मौजूद होते हैं। संस्था से जुड़े होते हैं। जिसमें सभी को भारतीय संविधान द्वारा एक समान अधिकार प्राप्त होता है। किसी एक को उसकी संख्या के आधार पर न उसका अधिकार बढ़ाया जा सकता है न ही घटाया जा सकता है। लेकिन भारत में सरकारी संस्कथाओं के भीतर तमाम समस्याओं में एक समस्या बड़े स्तर पर व्याप्त है। वह है, संस्थाओं के भीतर धर्म का प्रवेश।


आज भी भारत में सरकारी और गैर सरकारी संस्थान पूर्णतयः धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सके हैं। उन शिक्षण संस्थानों में जहां हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी जैसे तमाम धर्मों और विचारों वाले लोग एक साथ बैठते हैं, पढ़ते हैं, सीखते हैं, दोस्ती करते हैं। वहां सबको संस्थान की ओर से एक सरस्वती पूजा करवा कर यह बता दिया जाता है कि हम सब अलग-अलग हैं। क्यों नहीं कोई संस्थान आज तक अन्य धर्मों के त्योहार मनाते प्रतीत हुए? यह इस बात की गवाही देता है कि भारत आज भी धर्मों के जाल से, पक्षपात पूर्ण व्यवहार से निकल नहीं पाया है।


कुछ उसी तरह संवैधानिक पद पर रहते हुए कुलपति गिरीश्वर मिश्र विवि परिसर में गणेश मूर्ति स्थापित कर भारतीय संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए हमारे सम्मुख हैं।


लेकिन सवाल यह है कि क्या अब नैतिक आधार पर कुलपति गिरीश्वर मिश्र इस्तीफा देंगे?


(नोट- मैं किसी धर्म का विरोध करने के उद्देश्य से नहीं बल्कि धर्म निर्पेक्ष संस्थान में किसी भी धर्म के धार्मिक कार्यक्रम के विरोध में हूँ।)

गौरव गुलमोहर
छात्र
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा महाराष्ट्र (442001)

नोट-: ये लेखक का निजी विचार है।

Post a Comment

0 Comments