" आज बटला हाउस फेक एनकाउंटर केस की 10वीं बरसी है। इस एनकाउंटर केस में हमारे जिले, आज़मगढ़, के मुस्लिम छात्रों की दिल्ली के जामिया नगर में पुलिस द्वारा हत्या कर दी गयी और उसे एनकाउंटर का नाम दे दिया गया। आज़मगढ़ को आज भी 'आतंकवादी जिला' कह कर सम्बोधित किया जाता है। आज़मगढ़ के लोगों को हर एक पार्टी से यह सवाल पूछना पड़ेगा कि तमाम पार्टियों ने बटला हाउस केस में क्या किया? आज़मगढ़ की आइडेंटिटी जब आतंकवादी बनाई जा रही थी तो क्या किया? जब आज़मगढ़ के स्टूडेंट्स को बाहर रेंट पर कमरा और सिमकार्ड नहीं मिलता है तो ये लोग क्या करते हैं? जब आज़मगढ़ जिले के स्टूडेंट्स अपने जिले का नाम बताने में असहज महसूस करने लगते हैं तब आप क्या करते हैं? आज भी तमाम निर्दोष मुसलमान आतंकवाद और देशद्रोह के नाम पर जेलों में बंद हैं, तब ये पोलिटिकल पार्टियां कहाँ रहती हैं? ऐसे ही बहुत सारा सवाल है जो मेरे मन में आता है लेकिन इस देश में अगर आपको बिना किसी कसूर के मार दिया जाय तो किसी की भी आपके प्रति जवाबदेही नहीं है, यही क्रूर सच्चाई है। हम लोगों को बटला हाउस में मारे गए स्टूडेंट्स अभी तक भूले नहीं है और हम आपको बार बार याद दिलाएंगे की हम भी उसी आज़मगढ़ से दिल्ली में पढ़ने आये हैं जिस आज़मगढ़ के कुछ स्टूडेंट्स को आपने 2008 में आतंकवादी कह कर मारा था और आज तक उन्हें न्याय नहीं मिला है। हो सकता है आप हम लोगों को भी मार दें लेकिन प्रतिरोध को आप नहीं कम कर सकते हैं।"
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