पहला दलित-मुस्लिम अलायन्स सावित्री बाई फुले और फ़ातिमा शेख़ का था-:शरजील उस्मानी

जनाब ए आली हज़रत ठाकुर अजय सिंह जी,
आशा है आप मौज में होंगे। एलएलएम की पढ़ाई का भार आपकी राजनीति के आड़े नहीं आ रहा होगा। यदि आड़े आ रहा हो तो बतौर आपका प्रिय यह मेरा कर्तव्य है कि मैं आपको बताऊँ की आप राजनीति करिए, एलएलएम से क्या होगा। व्यक्ति जिसमें अच्छा हो उसे वही काम करना चाहिए।
इक़बाल ने लिखा था ~
आह! शूदर के लिए हिन्दोस्तां ग़मखाना है
दर्दे-इंसानी से इस बस्ती का दिल बेगाना है।
यह अशआर यदि समझ आ जाए तभी आगे का पत्र पढ़िएगा। अमुवि प्रशासन के लिए आपका पत्र पढ़ा। सार्वजनिक रूप से पत्र लेखन की आपकी यह कला मुझे बहुत भाती है। ख़ैर। अब चूंकि उस पत्र में हमारे द्वारा कराए गए प्रोग्राम का ही ज़िक्र है, मैं आपके द्वारा उठाए गए सभी सवालों का जवाब बड़े इत्मीनान और एहतेराम के साथ देना चाहूंगा।
एक और शेर अर्ज़ है ~
तुमने अच्छा ही किया कर दिया शिक़वा मुझसे,
मुझको मौका तो मिला दर्द के इज़हार का आज।
आपका सवाल है कि 'दलित-मुस्लिम एकता' पर प्रोग्राम करा कर हम हिन्दू समाज को बाँटने का काम कर रहे हैं।
यह अलग बात है कि इस देश के महान व्यक्तित्व (बाबा साहेब अम्बेडकर) को यह कहने पर विवश कर दिया गया कि, 'दुर्भाग्य से मैं हिन्दू धर्म में पैदा हुआ था। यह मेरे बस की बात नहीं थी। लेकिन अपमानजनक स्तिथि से इनकार करना मेरी शक्ति की सीमा में है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं मरते समय तक हिन्दू नहीं रहूंगा।'
हिन्दू समाज को हम नहीं बांट सकते। हमारी क्या बिसात। हम तो दलितों से भी बत्तर स्तिथि में हैं। (सच्चर रिपोर्ट, 2006)
बहरहाल, ऋग्वेद मण्डल 10, सूक्त 90, मन्त्र 11 तथा 12 देखिए,
यत्पुरुष व्यदधु: कतिधा व्यकल्पयन ।
मुखं किमस्य को बाहू का उरू पादाउच्येते ।। (11)
ब्रह्माणोस्य मुखमासीदबाहु राजन्य: कृत: ।
उरूतदस्य यद्वैश्य: पदभ्या शूद्रो जायत ।। (12)
अर्थ - प्रजापति ने मानव-समाजरूपी जिस पुरूष का विधान किया, उसकी कल्पना कितने प्रकार की है? इसके दोनों बाहू कौन हैं? कौन इसकी दोनों जाँघे हैं तथा इनके दोनों पैर कौन हैं? (11) इन कतिपय प्रश्नों के उत्तर इसके आगे के मंत्र में मिलते हैं। इस पुरुष का मुँह ब्राह्मण है, बाहू क्षत्रिय हैं, जाँघे वैश्य हैं और पैर शूद्र हैं। (12)
यह बंटवारा नहीं तो और क्या है?
यजुर्वेद, अध्याय 31, मन्त्र 10 तथा 11 एवं अर्थवेद क्र० 19/6/6 में भी पुरुष सूक्त हैं। इन तीनों ही वेदों में पुरुष-सूक्त के मंत्र सब अंशों में मिलते हैं, केवल अर्थवेद में 'ऊरु' शब्द की जगह 'मध्य' शब्द आया है; जैसे 'मध्यं तदस्तय यद्वैश्य:' पर अर्थ में कोई भेद नहीं है।
महर्षि दयानंद सरस्वती का ऋग्वेद भाष्य भी बिल्कुल यही कहता है। यही अनुवाद पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य और 'हिंदुत्व' के लेखक रामदास गौड़ भी करते हैं।
वैदिक काल में ही शूद्रों की स्तिथि पैरों के समीप पहुँच चुकी थी। आर्यों द्वारा अनार्य शूद्रों की हत्या, दमन के प्रचुर इन वेदों में भरे पड़े हैं -
उद वृह रक्ष: सहमूलमिन्द्र वृश्चा मध्यं प्रत्यग्र श्रीणीही।
आ कीवत: सललूकं चकर्थ ब्रह्माद्विषे तपुरषी हेतिमस्य ।।
(ऋग्वेद, 3-30-17)
अर्थात- हे राजन! आप इन राक्षसों (शूद्रों) को नष्ट करो, जड़ मूल से काट डालो। इसके मध्य भाग को काट डालो। प्रत्येक अग्रगामी का हनन करो। इस पापी को बहुत दूर कर दो। इस प्रकार हे राजन! (अनुवाद - दयानन्द सरस्वती)
ज्ञात रहे अभी मनु० पर नहीं पहुँचे हैं। मनु० 8/415 देखिए। बाक़ायदा यह बताया गया कि कुल कितने तरह के दास होते हैं, उनसे व्यवहार कैसे करना है।
एक नाम जिससे मुझे सबसे ज़्यादा चिढ़ है, तुलसीदास, वे लिखते हैं -
शापत ताड़त पुरूष कहता, विप्र पूज्य अस गावहिं सन्ता।
अर्थात- शापते, मारते, कठोर बोलते हुए भी ब्राह्मण पूज्य हैं।
शूद्र के बारे में मनु० ने एक जगह यह तक लिख दिया है कि - यदि कोई शूद्र ब्राह्मण को कूवचन कहे तो उसके मुँह में लोहे की 10 अँगुले आग में तपा कर ठोक दो।
फिर आप, अजय भाई, कहेंगे कि हम हिन्दू समाज मे बँटवारा कर रहे हैं।
दलितों को ज्ञान प्राप्ति पर प्रतिबंध मुसलमानों ने नहीं लगाया। उनके कानों में शीशा पिघला कर डालने का प्रावधान हमने नहीं रचा। उनको हम मुसलमानों ने नहीं विवश किया कि वे रास्तों पर नंगे चलें और गले मे हंडिया लटकाए रहें, ताकि थूकें तो उसी में थूकें। उनके कथित 'नापाक' साए से मुसलमान नहीं बचते हैं। किसके पूजा स्थलों के द्वार दलितों के लिए सदियों से बंद हैं, वे मुसलमानों के तो नहीं हैं।
दलित-मुस्लिम इत्तेहाद पर प्रोग्राम क्यों होना चाहिए यह आपको समझ नहीं आएगा। आपके नाम के आगे 'ठाकुर' है, आप की गिनती शोषण करने वालों में होती है।
रखियो ग़ालिब मुझे इस तल्ख़ नवाई पर मुआफ़,
आज कुछ दिल में मेरे दर्द सिवा होता है।
रही बात इस इत्तेहाद की तो बतौर भाई सुमीत (Sumeet Samos), पहला दलित-मुस्लिम अलायन्स सावित्री बाई फुले और फ़ातिमा शेख़ का था। हम तो बस अपनी हिस्ट्री का रिविज़न कर रहे हैं। यूनिटी ऑफ ऑप्रेस्ड नेचुरल है।
आप खिसियाहट में यह कह रहे हैं कि आप हिन्दू-बरेलवी इत्तेहाद पर प्रोग्राम कराएँगे। कराइए, स्वागत है। पर आपमे इत्तेहाद का आधार क्या होगा, खिसियाहट? यदि आप मुझे समझा पाएं की आपका हिन्दू-बरेलवी, हिन्दू-अहले हदीस, हिन्दू-देवबंदी इत्तेहाद किस आधार पर होगा और होना चाहिए तो मैं खुद आपके प्रोग्राम के लिए पोस्टर लगाउंगा। आप की पार्टी के गुंडे मारने से पहले शिया, सुन्नी, बरेलवी, देवबन्दी, सलफ़ी आदि नहीं पूछते।
तबतक के लिए, केवल राजनीति के लिए राजनीति करना आपको मुबारक। हम जो कर रहे हैं वो हमको मुबारक।
वो दिलों में आग लगाएगा, मैं दिलों की आग बुझाऊँगा
उसे अपने काम से काम है, मुझे अपने काम से काम है।
आपका छोटा भाई,

नोट: कल का प्रोग्राम पूरी तरह से अकादमिक था, प्रोफेसर और छात्रों ने ही अपनी बात रखी थी। इस टॉपिक/थीम तो भारत के हर विश्विद्यालय में पढ़ाया जाता है। वहाँ न कोई राजनीतिक बात हुई, न चर्चा। जिनको आपत्ति है, वे खुद ही आपत्तिजनक हैं।


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